मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

चंद्रभान भारद्वाज की गजलें साखी पर जल्द.

प्रिय भाई नीरज से माफी चाहूँगा कि उन्हें समेट नहीं पाया. कुव्वत नहीं जुटा पाया. कुव्वत है भी नहीं मुझमें उन जैसे सरल और विराट कवि को समेटने की. समय ने इस तरह बाँध रखा था कि छुड़ा नहीं सका खुद को. पर अब धीरे-धीरे वक्त मेरी पकड़ में आता जा रहा है, उसकी मेरे ऊपर पकड़ ढीली पड़  रही है. भाई अविनाश, राजेश उत्साही और अन्य मित्रों का आग्रह मुझे हमेशा जगाता रहा है. साखी को फिर से आप तक पहुँचाने को तैयार हो रहा हूँ. बहुत जल्द मेरे अग्रज और हिन्दी गजल में एक बड़ा नाम चन्द्रभान भारद्वाज की गजलों के साथ उपस्थित होऊंगा.  आप सब का पहले जैसा प्यार मिलेगा ऐसी उम्मीद है.

5 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो तपन के बाद बारिश की पहली बूंद के जैसा अहसास है। बरसो बरसो हम कब से तरस रहे हैं।
    *
    तो साखी का चबूतरा फिर से आबाद होगा। शुभकामनाएं।

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  2. namaskar !
    subhash jee !
    BAS AAP NE THODI SI ANGDAAI LI HAI AAGE KE SAFAR KE LIYE ,SAAKHI KA RASSAWAN KARNE KE LIYE BETAABI HAI .
    SAADR

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  3. प्‍यार बेशुमार
    प्‍यार तारणहार
    प्‍यार से प्‍यार
    शब्‍दों का दुलार।

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हां, आज ही, जरूर आयें

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