शनिवार, 14 अगस्त 2010

श्रद्धा जैन की गजलें

मैं मुहब्बत हूँ, मुहब्बत तो नहीं मिटती है... एक ख़ुश्बू हूँ, जो बिखरूँ तो सबा हो जाऊँ, यह आवाज लगाने वाली शख्सियत को गजल की दुनिया में कौन नहीं जानता।  8 नवंबर 1977 को जन्मी श्रद्धा जैन अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों के लिए पूरे देश में मशहूर विदिशा और भोपाल में बचपन और प्रारंभिक शिक्षा के दिन बिताने के बाद आजकल सिंगापुर में रहती हैं। वहां वे ग्लोबल इंटरंनेशनल स्कूल में शिक्षिका  हैं। उनकी भीगी-भीगी गजलें जिस अंदाज में दिल को छूती हैं, वह अपने-आप में अनूठा है। उनकी गजलें बड़े प्यार से सहलातीं हैं, अपनी तीखी कशिश से धड़कनें बढ़ा देती हैं और फिर अपने साथ बहा ले जाती हैं। फिर आप के पास हर शेर की बेचैनी भरी आग के साथ दहकने और जलने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता। जदीद शायरी का नया अदबी निजाम गढ़ने वाले कुछ गिनती के लोगों में श्रद्धा जैन का नाम शुमार करना गलत नहीं होगा। हर नया जख्म उनकी गजल की जमीन तैयार करता है.. मिल जाए नया ज़ख़्म तो फिर कोई ग़ज़ल हो, अब ज़हन में अल्फ़ाज़ के पैकर नहीं आते। उनकी कुछ गजलें यहां पेश हैं---    

१.
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया

नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया

उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया

गुमान हो मुझे उसका, मिरे सरापे पर
ये क्या तिलिस्म है, कैसा सराब छोड़ गया

सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
 
2.
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए

रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए

आँसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए

हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए

उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए

मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रक्खी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये शरारे आ गये 





३.
पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़

नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़

कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़

ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़

करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं ख़ुदा के चराग़

उजाला बाँटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आँधियाँ जब भी रखे जला के चराग़ 

४.
हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर फिर भी सदा देते रहे 
 
श्रद्धा जैन के ब्लाग 



shrddha8@gmail.com

तस्वीर ..हेमंत शेष

32 टिप्‍पणियां:

  1. श्रीद्धाजी को मैं करीब दो साल से पढ़ रही हूँ ...हर गज़ल बहुत खूबसूरत होती है ..

    उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
    वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया

    बहुत खूब..

    आँसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
    क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए

    बहुत दर्द भर दिया है इन पंक्तियों में

    धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
    बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे .

    यह शेर बहुत पसंद आया ....

    शुक्रिया सुन्दर गज़लें पढवाने का

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  2. हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
    हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
    क्या बात कह दी…………यकीं का ये सामान भी गज़ब का है।

    उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
    पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए

    ओह्………यहाँ तो ज़िन्दगी भर का दर्द उभर कर आ गया है।

    नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
    सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़

    यहाँ तो ज़िन्दगी तल्ख हकीकतों को बयाँ कर दिया।

    कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
    जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़

    श्रद्धा जी ने ज़िन्दगी के हर पहलू को छूआ है अपनी गज़लों मे।

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  3. हिज्र के रंग से सराबोर ग़ज़ल, क़ाफिया “छोड़ गया” इसी जज़्बे की तर्जुमानी करता है. मतला बाँध लेता है
    अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
    वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
    ग़ज़ल के सारे शेर एक रूमानियत में डूबे हैं और यहाँ हिज्र का रंग, दर्द से ज़्यादा मोहब्बत का असर पैदा करता है. यहाँ विसाले यार की उम्मीद हर शेर के पसेमंज़र में दिखाई देती है. हर शेर एक से बढकर एक.
    .
    एक रूमानी ग़ज़ल मतला सारे रूमानी सिम्बल लिए महबूब के अफसानों का एलान कर रहा है. पर इस रोमांटिसिज़्म में थोड़ा फलसफा भी शामिल है. मसलन, रूह और जिस्म की गुफ़तगू, आँसुओं के सींचे दरख़्त पे खारे फलों की बात, लेकिन दो शेर अलग से खींचकर बाँध लेते हैंः
    हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
    हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
    और
    उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
    पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
    जहाँ एक ओर पत्थर हाथ में लिए ज़माने का ज़िक्र है और दूसरी ओर बूढे पेड़ को काटने के लिए आरे लिए इंसानों की ज़हनियत.
    मक़्ते पर तो बस इतना ही कहना काफी होगा कि ये शरारे नहीं शोले हैं.

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  4. इस ग़ज़ल की ख़ूबसूरती अलग से निखर के सामने आती है. यहाँ हर शेर अपनी एक अलग पहचान रखता है. और यहाँ प्रतियोगिता है कि कौन बेहतर है.
    जहाँ चिराग़ बेचने वालों के घर नीम तारीक़ी, इंसानियत के नाम पर बदनुमा दाग़ सा दिखता है, वहीं मुनव्वर राना की शैली में माँ को याद करना दिल को रूहानी सुकून पहुँचाता है.
    ये शेर बतौरे ख़ास मरहूम जाँ निसार अख़्तर का याद दिलाता है जो फिल्मी शायरी की तारीख़ में बकौल उनके सबसे सेक्सी गीत रहा है, लेकिन उसपर कोई उँगली नहीं उठा सकाः
    रात पिया के संग जागी रे सखि
    चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखि.
    और इसी के साथ श्रद्धा जी को पढें तो कुछ कहने को नहीं रह जाता. यही इस शेर की ख़ूबसूरती है.
    ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
    किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
    और आख़िर के दो शेर यतीम बच्चों के नाम और इंसानी हौसलों के नाम. गोया हर शेर अपने आप में एक मुकम्मल बयान है.
    .
    अक्सर ग़ज़ल के मुख़्तलिफ़ शेर मुख़तलिफ़ बयान होते हैं. श्रद्धा जी कि इस ग़ज़ल में सारे शेर अलग अलग तरह से एक ही बात की ओर इशारा कर रहे हैं और वो बात है एक आशिक़ (या माशूक) का अपने बिछड़े माशूक (या आशिक़) के लिए त्याग के जज़्बे को बयान करना, या फिर टूटे हुए दिल से दुआ देना. चाहे वो आँखों में आँसू लिए हौसला देना हो, बारिशों में पत्ते बनकर उड़ जाने वाले परिंदों को छाँव मुहया कराना हो, अच्छा होगा कह कर ख़ुद को दगा देना हो, सारी ख़ुशियाँ उसके पते पर रुख़सत करना हो, ख़ुद से साथीके मिलने की दुआ हो या तमाम बंदिशों के बावजूद ख़ामोश सदा देना हो. एक शेर जो बाकियों से मुख़तलिफ बयानी करता है अलग से ख़ूबसूरत लगता हैः
    मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
    इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे.
    .

    सारी गज़लें बाबहर हैं और गाई जाने वाली हैं. शायरा का तजुर्बा हर ग़ज़ल के हर शेर में झलकता है. मुशायरों में पढी जाने पर क़ाबिले दाद ग़ज़लें.
    हमारी तरफ से 10 में से 9.5. यही क्या कम है कि हम अपनी ज़ुबान भूल गए!!! आधे नम्बर उसी के काटे हैं हमने.

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  5. shrddhaa ki gazale parh kar achchha laga. pahale bhi parh chuka hoo. adbhut pakad hai shraddha ki ghazalon mey. alag hi rang...isiliye usake prati shraddhaa hi tapakati hai..

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  6. अगर सच पूछिये तो श्रद्धा जी की गज़लें मुझे बहुत पसंद है , जब भी कुछ बढ़िया पढ़ने की इच्छा होती है कविता कोष में प्रकाशित श्रद्धा जी की ग़ज़लों को बांच लेता हूँ. अभी चूँकि सफ़र में हूँ इसलिए ज्यादा नहीं लिख सकता, बधाईयाँ-शुभकामनाएं फिर कुछ चुनिन्दा ग़ज़लों को प्रस्तुत करने के लिए !

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  7. ब्लॉग जगत में आज श्रद्धा यानी ग़ज़ल !!!
    शहरोज़

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  8. bhut sundr rchnaye hain isi thr ki aap ki kuchh rchnayen do din phle bhi pdhi thin prtikriya di thi aaj bhi shubhkamnayen in pnktiyon ke sath
    jb chle ptthr tabhi phchan un ki ho ski
    vrna un ko is shahr me janta tha kaun
    kha ke ptthr ko unhone mn ko hlka kr liya
    vrna mn ki bat ko bat ko phchanta hi kaun
    fir se badhai
    dr. ved vyathit

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  9. हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
    हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
    श्रद्धा जी की गज़ले पढ़ी. गज़लों का लगभग हिंदुस्तान में १००० साल का इतिहास है. परम्परा का ज्ञान और अभ्यास से ही कुछ अच्छा किया जा सकता है. कुछ शेर ठीक हैं पर कुछ बुरे भी.
    जो बेहतर ही वह सामने आना चाहिए .

    यह शेर खटकता है-

    उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
    पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए

    जवाब देंहटाएं
  10. श्रद्धा जी की गजल काबिले तारीफ है। उन्‍होंने गजल के परम्‍परागत स्‍वरूप को पेश किया है जिसके बारे में कहा जाता है कि गजल प्रेमी-प्रेमिका की आपसी गुप्‍तगू यानी वार्तालाप है। उन्‍होंने अपनी गजल के माध्‍यम से अपनी निजी अनुभूतियों को अनूठे अंदाज में प्रस्‍तुत किया है। उनकी गजल में संयांग और वियोग की जूगलबंदी भी दिखाई देती है। उनका निम्‍न शेर बेहद पसंद आया-

    हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
    हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए

    काश श्रद्धाजी की मोहब्‍बत बगावत की चिंगारी में बदल जाती और लोग हाथों में पत्‍थर लेकर व्‍यवस्‍था परिवर्तन के लिए मैदान में आ जाते।

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  11. श्रद्धा जी को कौन नहीं जानता. इनकी लेखनी कमाल लिखती है या ये...लेकिन हम जरूर हैरान हो जाते हैं की इतना अच्छा आखिर दोनों में से कौन लिखता है. सारी गजले बहुत उम्दा हैं.

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  12. ओम प्रकाश नदीम15 अगस्त 2010 को 12:46 am बजे

    श्रद्धा जी की गजलें पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। उनके शेर कहने का ढंग बहुत अच्छा है। ये लम्स तेरा... बिल्कुल नये अन्दाज में कहा गया शेर है। बहुत-बहुत मुबारकबाद। उनकी शायरी का कैनवस काफी बड़ा है। उनमें बहुत सम्भावनाएं निहित हैं। उम्मीद है आगे भी इसी तरह की उम्दा गजलें पढने को मिलेंगी।

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  13. श्रद्धा को पढ़कर यह ख्‍याल आया

    जितना डूबे उतना उछाल आया
    उत्‍साही वे लिखती हैं या जीती है

    रह रहकर बस यही सवाल आया

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  14. नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
    मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया

    श्रद्धा जी आपकी ग़ज़लें पढ़ना मैं अभी कुछ दिन से शुरू किया ..यही सोचता हूँ इतना देर से पढ़ना क्यों शुरू की...एक से बढ़कर एक शेर...बधाई

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  15. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!

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  16. श्रद्धा जी की गज़ले तो हमेशा ही बेहतरीन होती है| सभी गज़ले पसंद आई| स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये|

    जवाब देंहटाएं
  17. श्रद्धा की एक-एक ग़ज़ल श्रद्धा पूर्ण है, एक आग है जो इन शोलों से उठती है, एक राग है जो दिल का दर्द सुनाता है। श्रद्धा जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं, लिखते रहें और प्रस्‍तुत करते रहें, यही कामना है।

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  18. श्रद्धा जी की ग़ज़लें सबसे अलग और दिलकश होती हैं...उन्हें पढना एक अनुभव से गुजरने जैसा होता है...मैं उनकी शायरी का बहुत बड़ा फैन हूँ...सलीके से अपनी बात कहने का उनका अपना एक अलग अंदाज़ है...उनकी ग़ज़लों में से किसी एक शेर को कोट नहीं किया जा सकता क्यूँ की सारी ग़ज़लें और उनमें आये अशआर बेशकीमती लाजवाब और अनूठे होते हैं...शुक्रिया उनकी बेहतरीन शायरी हम तक पहुँचाने के लिए..
    नीरज

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  19. वैसे तो सभी ताजातरीन हैं पर
    यह तो बेहतरीन है

    हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
    हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए

    पत्‍थर भी खुश हो रहे होंगे कि सिर फोड़ने से इतर अब यकीं दिलाने के लिए हमारा इस्‍तेमाल होने लगा है। ऐसे पत्‍थरों से सिर नहीं फूटा करते बल्कि मुहब्‍बत करने वाले पत्‍थरों के प्रति श्रद्धावनत हुआ करेंगे। बिना हेलमेट धारण किए पहुंच जाया करेंगे, और इससे अच्‍छा सच्‍चा यकीन का कोई और तरीका क्‍या होगा ?

    जवाब देंहटाएं
  20. ज्यादा नहीं, शायद एक साल हुआ जब पहली बार श्रद्धा जैन की गजलों से परिचय हुआ. पहली गजल पढ़ते ही लगा कि रचनाकार में दम है. कमेन्ट देने से खुद रोक नहीं सका. हालाँकि कमेन्ट उत्साहवर्धक नहीं तो नहीं था, हौसला पस्त कर देने वाला भी नहीं था. मैं उन दिनों खुद भी नया नया ब्लागिंग में आया था और किसी को मशवरा देते झिझक महसूस होती थी. मगर श्रद्धा ने तो जैसे मेरे कमेन्ट को चैलेन्ज समझ लिया और एक वर्ष के नन्हे से अरसे में वो कर दिखाया, किसके लिए अनगिनत शायर/कवि तरसते हैं.
    श्रद्धा की सबसे बड़ी खूबी अगर तलाश करने की कोशिश की जाए तो यह बहुत मुश्किल काम होगा. आसान जबान को खूबी बताया जाए, विषय (कंटेंट) को खूबी गिना जाए, कहने के अंदाज़ की तारीफ की जाए, फैसला करना मुश्किल है. एक बात जरूर है, श्रद्धा की कोई भी गजल, पढ़ने वाले को एक फौलादी गिरफ्त में जकड़ लेती है. मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर आप चाहें भी तो श्रद्धा का एक मतला या एक शेर पढ़कर गजल से हट नहीं सकते. गजल बिना खत्म हुए आप को हटने नहीं देगी.
    इन सबके बावजूद, मेरा यह कहना है कि श्रद्धा को अभी और मिट्टी खोदनी होगी, बहुत सी खाइयां पाटनी होगीं, बहुत से रास्तों को अपने हक में हमवार करना होगा. यह मेरी लफ्फाजी नहीं, एक साल से श्रद्धा को उनके, दूसरों के ब्लाग्स और कविता कोश में प्रकाशित रचनाओं को पढ़ने के बाद, आकलन के बाद का नतीजा है.
    डॉ. सुभाष राय का आभार प्रकट करना ही पड़ेगा जिन्होंने यत्र-तत्र-सर्वत्र छिटके हुए रचनाकारों को 'साखी' के माध्यम से परिचय देने के लिए एक मजबूत प्लेटफ़ॉर्म दिया है.
    श्रद्धा जी, आपको बधाई, 'साखी'में स्थान के लिए.

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  21. श्रृद्धा जी को पढ़ना हमेशा सुखद होता है. बहुत उम्दा!

    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

    जवाब देंहटाएं
  22. स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  23. श्रद्धा दीदी की गज़लें , हर गज़ल प्रेमी के दिल को बाँध लेती है ||
    ऐसी गज़लें , जिसके किसी भी शेर को आप
    न पढने की चूक नहीं कर सकते ||

    और हाँ , एक और बात , जितनी सुन्दर गज़ल वो कहती हैं ,
    उतनी ही सुन्दर वो मन की भी हैं ||

    मां सरस्वती उनके कलम पे हमेशा विराजमान रहें ,
    और वो गज़ल की दुनियां में एक ऐसा मुकाम बनायें ,
    जिसे गज़ल की दुनियां में कदम रखने वाला हर व्यक्ति ,
    उन्हें अपना आदर्श माने ||
    हमारी ईश्वर से यही दुआ है ||

    जवाब देंहटाएं
  24. श्रद्धा जी को पढता रहता हूँ.... यहाँ प्रस्तुत सभी ग़ज़लें लाजवाब हैं.

    जवाब देंहटाएं
  25. सर्वत जी ने बिल्कुल सही कहा है कि पिछले एक वर्श में यदि किसी ने सबसे ज्यादा चैंकाया है तो वह नाम है- श्रद्धा जैन । पिछले वर्ष ब्लाग जगत में ग़ज़लों में कई नामों से परिचय हुआ। प्रकाष अर्ष, वीनस केसरी, रविकांत पाण्डेय, अंकित सफर, श्रद्धा जैन। इन सबमेंं श्रद्धा जी ने बहुत कम समय में अपना एक मेयार कायम किया है। वे अन्यों से मीलों आगे हैं। उनके व्यक्तित्व की एक और खासियत है जिसके कारण वे आज इस मुकाम पर हैं वह है हर प्रकार की टिप्पणी को सहजता से लेने और ज्ञान जहां से भी मिले उसे समेटने का गुण। उनकी चारों ग़ज़लों में मैं तो हतप्रभ हूं उनके बहर और कथ्य पर नियन्त्रण का। उनकी खुष्बू दूर तक और देर तक कायम रहेगी ऐसा मेरा विष्वास है।
    अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
    वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया

    उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
    वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया

    उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
    पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए

    ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
    किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
    श्रद्धा जी की ग़जलों को पढ़कर कुछ अशआर याद आ रहे हैं-

    गिजाल, चांदनी, सन्दल, गुलाब रखता है।
    वो एक शख्स भी क्या-क्या खिताब रखता है।

    दिलों की बातें, दिलों के भीतर जरा सी जिद से दबी हुई हैं।
    वो सुनना चाहें जबां से सब कुछ मैं करना चाहूं नजर से बतियां।

    जवाब देंहटाएं
  26. सर्वत जी ने बिल्कुल सही कहा है कि पिछले एक वर्श में यदि किसी ने सबसे ज्यादा चैंकाया है तो वह नाम है- श्रद्धा जैन । पिछले वर्ष ब्लाग जगत में ग़ज़लों में कई नामों से परिचय हुआ। प्रकाष अर्ष, वीनस केसरी, रविकांत पाण्डेय, अंकित सफर, श्रद्धा जैन। इन सबमेंं श्रद्धा जी ने बहुत कम समय में अपना एक मेयार कायम किया है। वे अन्यों से मीलों आगे हैं। उनके व्यक्तित्व की एक और खासियत है जिसके कारण वे आज इस मुकाम पर हैं वह है हर प्रकार की टिप्पणी को सहजता से लेने और ज्ञान जहां से भी मिले उसे समेटने का गुण। उनकी चारों ग़ज़लों में मैं तो हतप्रभ हूं उनके बहर और कथ्य पर नियन्त्रण का। उनकी खुष्बू दूर तक और देर तक कायम रहेगी ऐसा मेरा विष्वास है।
    उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
    वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया

    आँसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
    क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए

    उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
    पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए

    ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
    किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़

    श्रद्धा जी की ग़जलों को पढ़कर कुछ अशआर याद आ रहे हैं-

    गिजाल, चांदनी, सन्दल, गुलाब रखता है।
    वो एक शख्स भी क्या-क्या खिताब रखता है।

    दिलों की बातें, दिलों के भीतर जरा सी जिद से दबी हुई हैं।
    वो सुनना चाहें जबां से सब कुछ मैं करना चाहूं नजर से बतियां।

    जवाब देंहटाएं
  27. जाकिर जी गजलों पर स्नेह भरी दस्तक के लिए शुक्रिया

    संगीता जी आपका स्नेह मेरी ताकत है आशीष बनाए रखे

    मदन मोहन जी ग़ज़ल पसंदगी के लिए शुक्रिया

    वंदना जी आपने गजलों की रूह को समझा और सराहा, सकून मिला धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  28. सलिल जी क्या कहूँ जिस तरह आपने मेरी गजलों का विश्लेषण किया है उसकी रूह तक पढ़ी है एक एक शब्द पर आपकी टिपण्णी
    बस इतना ही कहूँगी कि मेरा ग़ज़ल लिखना सार्थक हो गया ..

    जवाब देंहटाएं
  29. श्रद्धा की ग़ज़लों में मुझे रवायती और जदीद शायरी के फूलों से सजाया गया एक बेहतरीन गुलदस्ता देखने को मिला। ग़ज़लकार के रूप में मैं ख़ुद पारम्परिक एवं आधुनिक तत्वों के स्वस्थ संतुलन का सबल पक्षधर हूँ। चिंतन के वृक्ष की नवीनतम कोपलें सबसे ऊपर और गगन उन्मुखी तो हो सकतीं हैं मगर उन्हें ऐसा बना रहने के लिए खाद पानी और अपने अस्तित्व के दूसरे सारे तत्त्व तो ज़मीन से उस वृक्ष के सबसे पुराने अंग यानी जड़ों के माध्यम से ही प्राप्त करने होंगे। माँ कितनी ही बूढी क्यों न हो जाए अपनी युवा संतति को कुछ न कुछ सिखाने की स्थिति में हमेशा रहती है। श्रद्धा ने जिस खूबसूरती से रूमानी हकीक़त या हक़ीकी रूमानियत को अपने अशआर में पेश किया है वो वाकई काबिले तारीफ़ है। पहली ग़ज़ल के मक़ते में हिज्र देखने वाले हिज्र देखने के लिए आजाद हैं, मुझे तो इसमें उस मुहब्बत के आगाज़ का बड़ी तहज़ीब से किया गया एक खूबसूरत इशारा दिखाई दे रहा है जिसका अंजाम वस्ल भी हो सकता है :
    अजीब शख्श था आँखों में ख्वाब छोड़ गया
    वो मेरी मेज पे अपनी किताब छोड़ गया
    ध्यान रहे अभी ख्वाब टूटा नहीं है अभी तो ख्वाब की शुरुआत है। दूसरी ग़ज़ल के दो शेर दौरे हाज़िर के हालात से रूबरू कराते हुए ग़ज़ल को सीधे जदीद शायरी से जोड़ते हैं:
    हमको अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
    हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए

    उम्र भर फल-फूल ले जो छाव में पलते रहे
    पेड़ बूढा हो गया वो लेके आरे आ गए
    पहला शेर यदि honour-killing वाली आज की ज्वलंत सामाजिक समस्या पर सीधा प्रहार करता है तो दूसरा पुरानी पीढ़ी के प्रति हमारी नयी पीढ़ी की अहसान फरामोशी पर उँगली उठाता है। बहर-ओ-वज्न पर पर्याप्त पकड़ बना चुकीं श्रद्धा के पास ग़ज़ल कहने का सभी ज़रूरी साज़-ओ-सामान मौजूद है। उनकी कलम से और उम्दा ग़ज़लों की उम्मीद के साथ उन्हें ढेर सारी बधाइयाँ। ................डॉ.त्रिमोहन तरल

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  30. इतनी ख़ूबसूरत गज़लें! वाह...श्रद्धा जी, वाह...लाजवाब!

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हां, आज ही, जरूर आयें

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